मंगलवार, 9 सितंबर 2008

बचपन


जब बचपन का फूल खिला था,
एक हसता हुआ मासूम चेहरा मिला था
एक खिलौना देखकर चेहरा खिल जाता था,
रेत के ढेर से अपना मकान बन जाता था
एक डाट से समंदर बह जाता था ,
एक प्यार भरा दुलार सारे शिकवे मिटा जाता था
जरा से अंधेरे से दिल दहल जाता था,
वकत के रेत हाथो से फिसली
वो बचपन की तस्वीर बिल्कुल ही बदली,
वो मासूम चेहरे पे संजीदगी भर गयी
अब तो रेत को दूना भी बचपना लगता है,
अब ख्वाबो में बना घर ही अच्छा लगता है
अब बड़े बड़े तुफानो से दिन गुजरता है ,
अब तो किसी अनजाने से मिलने को दिल करता है